छोड़ी कपडे की दुकान,बनाया माइक्रोस्कोप कहलाये माइक्रोबायलॉजी के पिता

माइक्रोस्कोप के आविष्कारक एवं, माइक्रोबायोलॉजी के पिता ल्युवेन्हॅाक को अपने परिवार की कपडे की दुकान चलने से ज्यादा रूचि, कांच को पीसकर उनसे लेंस बनाने में थी| एक दिन उन्होंने ध्यान दिया कि, एक विशिष्ट दूरी पर दो लेंसों को रखने पर बेहद छोटी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से रखा जा सकता है| यहीं से माइक्रोस्कोप का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने बनाये गए माइक्रोस्कोप से धूल और पानी की बूंद को देखा और इनमे अनगिनत छोटे- छोटे जीवों को तेजी से चरों ओर घूमते हुए भी पाया | इस डच अन्वेषक ने एक नयी दुनिया में जीवन की खोज कर ली थी| अब तक निर्जीव समझे जाने वाली चीजों में भी जीवों की बड़ी संख्या में घर की खोज हुई| ल्युवेन्हॅाक ने इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी (Royal Society of England) को कई लम्बे शोध-पत्र लिखे, जिसमे उन्होंने इन सूक्ष्मजीवों के सभी विवरणों का वर्णन किया| ल्युवेन्हॅाक में तीव्र जिज्ञासा थी और अपने पत्रों में उन्होंने छोटे- छोटे विवरणों को भी लिखा है |

जीवन में प्रमुख घटनायें एवं प्रमुख वैज्ञानिक योगदान(Major Events in Life & Major Scientific Contributions) :-

जन्म- 24 अक्टूबर, 1632, डेल्फ्ट, हालैंड
मृत्यु- 26 अगस्त, डेल्फ्ट, हालैंड
1660 में वह शेरिफ बने, और 1680 में लंदन की रॉयल सोसाइटी के लिए चुने गए| उनके शोध-पत्र सोसायटी के जर्नल “Philosophical Transactions” में प्रकाशित हुए| ल्युवेन्हॅाक ने करीब 419 लेंस बनाये| उन्होंने अपने द्वारा देखे गए सूक्षम जीवों को “Animalcules” कहा| उन्होंने लाल रक्त कणिकाओं (Red Blood Cells) का भी अध्ययन
किया| उनके द्वारा बनाये गए लेंसों से सूक्ष्म चीजों को 50 से 400 तक बड़ा देख पाना संभव हुआ, जिससे रक्त केशिकाओं (blood capillaries), प्रोटोजोआ (protozoa) और बैक्टीरिया की खोज हुई|

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