इलेक्ट्रॉनिक गैजेट(Electronic Gadget and Health) और स्वास्थ्य : बचपन पर भारी टेक्नोलॉजी

प्रसन्न प्रांजल ।
गैजेट्स ने बच्चों की दुनिया पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाला है। छह से सात घंटे तक लैपटॉप, कंप्यूटर और अन्य गैजेट्स पर समय बिताने की वजह से बच्चों की नींद उड़ गई है। उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कैसे आप इस लत से अपने बच्चों को दूर रख सकते हैं, बता रहे हैं प्रसन्न प्रांजल 

गैजेट्स ने आज के युवाओं की जिंदगी में ऐसी जगह बना ली है, जिसे अनदेखा करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है। आज का युवा खाना और पानी के बगैर कई दिनों तक रह सकता है, लेकिन मोबाइल, आईफोन, लैपटॉप जैसे गैजेट्स से कुछ मिनट भी दूर रहना उसे मंजूर नहीं है।पिछले कुछ समय से गैजेट्स ने टीनएजर्स और बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इस वजह से इन्हें गैजेट्स के कई साइड इफेक्ट से दो-चार होना पड़ रहा है। एसोचैम की ताजा रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के चलते बच्चों में अनिंद्रा, तनाव, मोटापा और घबराहट जैसे कई लक्षण सामने आ रहे हैं। एसोचैम के इस सर्वे में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे 10 महानगरों  के 10 से 18 वर्ष तक के बच्चों और टीनएजर्स को शामिल किया गया था। सर्वे में यह बात सामने आई कि टेक्नोलॉजी के चलते बच्चे छह से सात घंटे तक मोबाइल, कंप्यूटर, वीडियो गेम्स और अन्य गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं।

आजकल टीनएजर्स देर रात तक मोबाइल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और वीडियो गेम्स का इस्तेमाल करते हैं। मोबाइल पर वे दोस्तों से सुबह 4 बजे तक चैटिंग करते हैं।  88 प्रतिशत बच्चे देर रात तक टीवी, इंटरनेट को देखते हुए अपना होमवर्क करते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक टीनएजर्स के लिए यह बेहद घातक है।

सभी सुविधाएं हैं मौजूद :-


आजकल के टीनएजर्स के पास सुविधाओं की भरमार है। सर्वे के अनुसार 88 प्रतिशत टीनएजर्स अपने बेडरूम में अकेले सोते हैं और उनके बेडरूम में म्यूजिक सिस्टम, कंप्यूटर और टीवी की सुविधाएं हैं। इस वजह से वे देर रात तक जगे रहते हैं और अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं।

गलत आदतों के हो सकते हैं शिकार :-


10 से 18 वर्ष की उम्र बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस उम्र में बच्चों में कई तरह की आदतें लग सकती हैं। छोटी उम्र में कई बार इसका काफी बुरा और गहरा असर बच्चों पर पड़ता है। वे कई तरह की गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं ।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ :-


एसोचैम के चेयरमैन डॉ. बी. के. राव के अनुसार, स्कूली बच्चों के लिए 8-9 घंटे की नींद पूरी करना जरूरी है, लेकिन गैजेट्स के आदी हो चुके बच्चे बमुश्किल 5-6 घंटे ही सो पाते हैं। इस वजह से उनकी सेहत भी प्रभावित हो रही है और वे पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख के अनुसार, आज के बच्चों और टीनएजर्स को गैजेट्स की लत लग चुकी है। वे इनके बिना रह नहीं सकते। ऐसे में जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों को गैजेट्स के फायदे-नुकसान प्यार से समझाएं और उन्हें इनका कम-से-कम इस्तेमाल करने को कहें ।

क्या करें माता-पिता (पेरेंट्स) :-


बच्चों के रूम में कंप्यूटर, लैपटॉप नहीं रखें। उन्हें बताएं कि गैजेट्स का ज्यादा इस्तेमाल उनकी सेहत के साथ-साथ पढ़ाई के लिए भी कितना ज्यादा खतरनाक है।रात को गाहे-बगाहे उनके कमरे में जाकर देख लें कि वे देर तक जगे तो नहीं हैं। अगर जगे हुए हैं तो वे क्या कर रहे हैं। बच्चों के लैपटॉप और कंप्यूटर को अक्सर चेक करती रहें।इंटरनेट की हिस्ट्री भी चेक करती रहें ताकि यह पता लगाया जा सके कि बच्चे कौन-कौन सी वेबसाइट पर जाते हैं।सभी तरह के आपत्तिजनक साइटों को ब्लॉक करवा दें, ताकि बच्चे चाहकर भी उन्हें ओपन नहीं कर सकें।अपने बच्चों को खेलने के लिए घर से बाहर भेजें और उन्हें बताएं कि खेलना-कूदना भी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है।

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