नागपंचमी को सांप पंचमी क्यों नहीं कहा जा सकता? सरीसृप प्रजाति के प्राणी को पूजा जाता है,वह सर्प है
किन्तु नाग तो एक जाति है जिनके संबंध में विभिन्न मतानुसार अलग-अलग
मान्यताएं है-यक्षों की एक समकालीन जाति सर्प चिन्ह वाले नागों की थी,यह भी
दक्षिण भारत में पनपी थी। नागों ने लंका के कुछ भागों पर ही नहीं,वरन
प्राचीन मलाबार पर अधिकार जमा रखा था।
पौराणिक संदर्भ
गरुड़ पुराण के अनुसार नागपंचमी के दिन घर के दोनों ओर नाग की मूर्ति खींचकर अनन्त आदि प्रमुख महानागों का पूजन करना चाहिए। स्कन्द पुराण के नगर खण्ड में कहा गया है कि श्रावण पंचमी को चमत्कारपुर में रहने वाले नागों को पूजने से मनोकामना पूरी होती है। नारद पुराण में सर्प के डसने से बचने के लिए कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नाग व्रत करने का विधान बताया गया है। आगे चलकर सुझाव भी दिया गया है कि सर्पदंश से सुरक्षित रहने के लिए परिवार के सभी लोगों को भादों कृष्ण पंचमी को नागों को दूध पिलाना चाहिए।
रामायण
में सुरसा को नागों की माता और समुद्र को उनका अधिष्ठान बताया गया है।
महेंद्र और मैनाक पर्वतों की गुफाओं में भी नाग निवास करते थे। हनुमानजी
द्वारा समुद्र लांघने की घटना को नागों ने प्रत्यक्ष देखा था।
नागों
की स्त्रियां अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी। रावण ने कई नाग कन्याओं का
अपहरण किया था। प्राचीन काल में विषकन्याओं का चलन भी कुछ ज्यादा ही था।
इनसे शारीरिक संपर्क करने पर व्यक्ति की मौत हो जाती थी। ऐसी विषकन्याओं को
राजा अपने राजमहल में शत्रुओं पर विजय पाने तथा षड्यंत्र का पता लगाने
हेतु भी रखा करते थे। रावण ने नागों की राजधानी भोगवती नगरी पर आक्रमण करके
वासुकि,तक्षक,शंक और जटी नामक प्रमुख नागों को परास्त किया था। कालान्तर
में नाग जाति चेर जाति में विलीन गई ,जो ईस्वी सन के प्रारम्भ में अधिक
संपन्न हुई थी।
नाग पंचमी पर्व के पीछे क्या मान्यता है?
नागपंचमी मनाने के संबंध में एक मत यह भी है कि अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने तपस्या में लीन ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य श्रृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर शाप दिया कि यही सर्प सात दिनों के पश्चात तुम्हे जीवित होकर डस लेगा,ठीक सात दिनों के पश्चात उसी तक्षक सर्प ने जीवित होकर राजा को डसा। तब क्रोधित होकर राजा परीक्षित के बेटे जन्मजय ने विशाल "सर्प यज्ञ" किया जिसमे सर्पो की आहुतियां दी। इस यज्ञ को रुकवाने हेतु महर्षि आस्तिक आगे आए। उनका आगे आने का कारण यह था कि महर्षि आस्तिक के पिता आर्य और माता नागवंशी थी। इसी नाते से वे यज्ञ होते देख न देख सके।सर्प यज्ञ रुकवाने,लड़ाई को ख़त्म करने पुनः अच्छे सबंधों को बनाने हेतु आर्यो ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में 'सर्प पूजा' को एक त्योहार के रूप में मनाने की शुरुआत की।
नागवंश से
ताल्लुक रखने पर उसे नागपंचमी कहा जाने लगा होगा। मास्को के लेखक ग्री म
वागर्द लोविन ने प्राचीन 'भारत का इतिहास' में नाग राजवंशों के बारे में
बताया कि मगध के प्रभुत्व के सुधार करने के लिए अजातशत्रु का उत्तराअधिकारी
उदय (461-ईपू )राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र ले गया,जो प्राचीन भारत
प्रमुख बन गया। अवंति शक्ति को बाद में राजा शिशुनाग के राज्यकाल में
ध्वस्त किया गया था। एक अन्य राज शिशुनाग वंश का था। शिशु नाग वंश का स्थान
नंद वंश (345 ईपू)ने लिया।भाव शतक में इसे धाराधीश बताया गया है अर्थात नागों का वंश राज्य
उस समय धरा नगरी(वर्तमान में धार) तक विस्तृत था। धाराधीश मुंज के अनुज और
राजा भोज के पिता सिन्धुराज या सिंधुज ने विध्याटवी के नागवंशीय राजा
शंखपाल की कन्या शशिप्रभा से विवाह किया था। इस कथानक पर परमारकालीन राज
कवि परिमल पदमगुप्त ने नवसाहसांक चरित्र ग्रंथ की रचना की। मुंज का
राज्यकाल 10 वीं शती ईपु का है। अतः इस काल तक नागों का विंध्य क्षेत्र में
अस्तित्व था।
नागवंश
के अंतिम राजा गणपतिनाग थे। इसके बाद नाग वंश की जानकारी का उल्लेख कहीं
नहीं मिलता है। नाग जनजाति का नर्मदा घाटी में निवास स्थान होना बताया गया
है। लगभग 1200 ईपु हैहय ने नागों को वहां से उखाड़ फेंका था।कुषान
साम्राज्य के पतन के बाद नागों का पुनरोदय हुआ और यह नव नाग कहलाए।
इनका
राज्य मथुरा,विदिशा,कांतिपुरी,(कुतवार )व् पदमावती (पवैया )तक विस्तृत था।
नागों ने अपने शासन काल के दौरान जो सिक्के चलाए थे उसमे सर्प के
चित्र अंकित थे। इससे भी यह तथ्य प्रमाणित होता है कि नागवंशीय राजा सर्प
पूजक थे। शायद इसी पूजा की प्रथा को निरंतर रखने हेतु श्रावण शुक्ल की
पंचमी को नागपंचमी का चलन रखा गया होगा। कुछ लोग नागदा नामक ग्रामों को
नागदा से भी जोड़ते है। यहां नाग-नागिन की प्रतिमाएं और चबूतरे बने हुए हैं
इन्हे भिलट बाबा के नाम से भी पुकारा है।उज्जैन में नागचंद्रेश्वर का मंदिर नागपंचमी के दिन खुलता है व सर्प उद्यान भी है। खरगोन
में नागलवाड़ी क्षेत्र में नागपंचमी के दिन मेला व बड़ा भंडारा होता है।स
र्प कृषि मित्र है व सर्प दूध नहीं पीते हैं,उनकी पूजा करना व रक्षा करना
हमारा कर्तव्य है |
ऐसी कथा मिलती है कि मणिपुर में रह रहे एक किसान परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री थी। एक दिन खेत में हल जोतते समय हल से नाग के तीन बच्चे मर गए। नागिन विलाप करती रही। गुस्से में उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने के लिए रात को किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन सुबह किसान की पुत्री को डसने की इच्छा से नागिन फिर आई तो किसान की पुत्री ने उसके सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया। साथ ही हाथ जोड़ क्षमा मांगने लगी। नागिन प्रसन्न हो उठी। उसने वर देते हुए उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुन: जिन्दा कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि जो आज के दिन नागों की पूजा करेगा, उसे नाग नहीं डसेंगे। जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी। तब से आज तक नागों के गुस्से से बचने के लिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है। ग्रामीण अंचलों में प्रचलित एक अन्य कथा के अनुसार नागों की पूजा से संतान सुख भी प्राप्त होता है। नाग लोग ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए उन्हें कच्चा दूध दिया जाता है। नाग पंचमी से भगवान कृष्ण और कालिय नाग की लड़ाई भी याद आती है।