आँखि न देखे बावरा, शब्द सुनै नहिं कान । सिर के केस उज्ज्वल भये, अबहु निपट अजान ॥८५१॥ ज्ञानी होय सो मानही, बूझै शब्द हमार । कहैं कबीर सो ब...
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हिंदी काव्यशाला : कबीर दोहावली ( अमृतवाणी ) भाग : 17
कुल खोये कुल ऊबरै, कुल राखे कुल जाय । राम निकुल कुल भेटिया, सब कुल गया बिलाय ॥८०१॥ दुनिया के धोखे मुआ, चला कुटुम की कानि । तब कुल की क्या...
हिंदी काव्यशाला : कबीर दोहावली ( अमृतवाणी ) भाग : 16
और कर्म सब कर्म है, भक्ति कर्म निहकर्म । कहैं कबीर पुकारि के, भक्ति करो तजि भर्म ॥७५१॥ विषय त्याग बैराग है, समता कहिये ज्ञान । सुखदाई सब ...
हिंदी काव्यशाला : कबीर दोहावली ( अमृतवाणी ) भाग : 15
सेवक सेवा में रहै, सेवक कहिये सोय । कहैं कबीर सेवा बिना, सेवक कभी न होय ॥७०१॥ अनराते सुख सोवना, राते नींद न आय । यों जल छूटी माछरी, तलफत ...
हिंदी काव्यशाला : कबीर दोहावली ( अमृतवाणी ) भाग : 14
कवि तो कोटि-कोटि हैं, सिर के मुड़े कोट । मन के कूड़े देखि करि, ता संग लीजै ओट ॥६५१॥ बोली ठोली मस्खरी, हँसी खेल हराम । मद माया और इस्तरी, ...
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