ग्रामीण परिवेश में नौनिहालों के "सीखने की शुरुआत (Beginning Of Learning) की लोकशैली पढ़ें पूरा आलेख शब्द-शिखर में ।

►उमाशंकर पेरिओडी
मैं एक कुम्हार परिवार से हूँ जो बाद में खेती करने लगा। हम दक्षिण कनरा के एक पिछड़े हुए गाँव में जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर खेती करने वाले छोटे किसान थे। जब हम छोटे बच्चे थे तो हमारे माता- पिता हमें अपने साथ खेत पर ले जाया करते थे। हम भी उनके साथ खेत में जाना चाहते थे क्योंकि उन दिनों यह हमारे जीवन की सबसे रुचिकर गतिविधि हुआ करती थी। हाई स्कूल पहुँचने की उम्र आते-आते मैं खेती के सभी बुनियादी कार्यों से परिचित हो चुका था। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो हैरत होती है कि किस प्रकार मैं खेती के कामों में दक्ष हो गया। जैसे ही मैं उस उम्र में पहुँचा जिसमें बच्चों को घर से बाहर ले जाया जा सकता है, माता-पिता ने कटाई के दिनों में खेत में ले जाना शुरू कर दिया। खेत में छोटे बच्चों को मेंड़ पर बैठा दिया जाता है जहाँ से
वे खेत में होते हुए काम को देखते रहते हैं।

पुरुषों और महिलाओं द्वारा गाए जा रहे गीतों को सुनते हुए बच्चे बड़े होते हैं। इनमें से लोक के कई रूप कहानी सुनाने का रूप लिए होते हैं – और सरल- साधारण, दोहराव के साथ, सुन्दर लय-ताल लिए होते हैं। शुरुआती काम धान की फ़सल पर आने वाले कौवों, चिड़ियों और अन्य पक्षियों को उड़ाने का होता है। फिर आता है खेत में पानी देने में बड़ों की सहायता करने का काम, विशेष तौर पर सब्जियों की क्यारी में। यह क्यारियों में लगी फसल में पानी को दिशा देने का और दूर लगे पौधों में पानी के छिड़काव का काम होता है। इस दौरान पानी के साथ खेलने का मौका मिलता है – एक-दूसरे पर पानी के छींटे मारते हुए, खेल का पूरा आनन्द उठाने का मौका होता है यह। जुताई के काम में दीक्षा बहुत जल्दी हो जाती है।

गर्मियों में जब मानसून की फसल के लिए खेत तैयार किए जाते हैं तो एक प्रक्रिया के तहत गीली मिट्टी को लकड़ी के एक बहुत बड़े फट्टे से एक-सा किया जाता है। इस फट्टे पर बोझ के लिए आमतौर पर पत्थर रख दिया जाता है और इसे बैलों द्वारा खींचा जाता है। पुरुष फट्टे पर खड़े होकर बैलों को हाँकते हैं और बच्चे हाँकने वाले की टाँगों के बीच बैठ जाते हैं। बच्चों को इस सबमें बहुत आनन्द आता है और वे यह सब खुशी-खुशी करते हैं।
अगला कदम बहुत महत्वपूर्ण है। भोजन के समय बच्चों से बैलों को तब तक सम्भालने को कहा जाता है जब तक बड़े भोजन न कर लें। भोजन खेत में ही लाया जाता है और खाया भी वहीं जाता है। बैलों की देखभाल के बाद, बड़ों के सामने ही, शुरू की कुछ कतारें जोतने का काम भी बच्चे करने लगते हैं। इस प्रकार उन्हें एहसास भी नहीं होता और वे धीरे-धीरे, बिना किसी बहलावे-फुसलावे के, खेती की गतिविधियों में शामिल होने लगते हैं। खेती की ये शुरुआती गतिविधियाँ आमतौर पर छोटी तथा सरल होती हैं जिनमें बच्चे दिलचस्पी लेते हैं। धीरे-धीरे वे सरल से जटिल गतिविधियों की ओर बढ़ने लगते हैं। कुछ ही समय में बच्चे खेती के कुछ बुनियादी कामों में
शामिल हो चुके होते हैं। मेरी माँ खेत का काम समाप्त करके बीड़ी तैयार करने के काम के लिए जल्दी-जल्दी घर लौटती थी। यही एक नगद कमाई का साधन था जिसके दम पर उसके लिए हमें स्कूल भेज पाना सम्भव हो पाता
था। मैंने बहुत कम उम्र में ही बीड़ी लपेटना सीख लिया था – तब मैं हाई स्कूल में भी नहीं पहुँचा था। बच्चों को बीड़ी लपेटने के काम में लगाने की प्रक्रिया बहुत ही रोचक और आकर्षक होती है। सबसे पहले तो छोटे बच्चों को लिपटी हुई बीड़ियाँ व्यवस्थित तरीके से रखने भर के लिए कहा जाता है। फिर एक ढेरी को पहले से बनी
कतार में लगाने का काम दिया जाता है। बाद में 25-25 बीड़ियों की प्रत्येक ढेरी रखने का काम दिया जाता है।
इसके बाद की गतिविधियाँ भी उतनी ही दिलचस्प और मोहक होती हैं। बच्चों को कहा जाता है कि वे तेन्दू के पत्तों को एक छोटी आयताकार टीन की शीट से काटें। इस पर थोड़ा पानी छिड़कना और फिर 2-3 घण्टों के लिए रखे रहना होता है।

इस के बाद उन्हें बीड़ी के अन्तिम सिरे पर धागा बाँधने को कहा जाता है। मैं कह सकता हूँ कि जब धागा बाँधने का यह काम दिया जाता है तो बच्चों को लगता है कि उन्होंने बीड़ी तैयार करने की प्रक्रिया में एक बड़ा चरण पार कर लिया है। इसके बाद बच्चे बहुत तीव्रता से बीड़ी लपेटने के काम की ओर बढ़ते हैं। मैं आपके साथ बच्चों को कुम्हार के काम में दक्ष किए जाने की प्रक्रिया भी साझा करना चाहता हूँ। बहुत छोटे बच्चों की देख- रेख परिवार के बड़ों द्वारा की जाती है और ऐसा करते हुए भी वे कई गतिविधियाँ कर रहे होते हैं। इन्हीं में से एक गतिविधि है बनाए जा रहे मिट्टी के बरतनों को अलग-अलग रूप देने के लिए पीटना। बच्चे सोते-जागते हुए भी बनाए जा रहे बरतनों को एक लय-ताल से पीटे जाने की ध्वनि को सुन रहे होते हैं। वे इन ध्वनियों और दृश्यों
को सुनते-देखते ही बड़े होते हैं। जब भी परिवार गीली मिट्टी लेने के लिए जाता है, बच्चे भी उनके साथ जाते हैं। वे पानी पकड़ाने में या बहुमूल्य वस्तुओं की रखवाली करने में मदद करते हैं। बच्चे कीचड़ को साफ करने की प्रक्रिया में गम्भीरता से शामिल रहते हैं। उन्हें कीचड़ से खेलना अच्छा लगता है। चिकनी मिट्टी तैयार करने के
काम में उनसे मदद ली जाती है। इस प्रक्रिया में गीली मिट्टी को पैरों से पटकना और गूँथना होता है और बच्चों को इसमें बहुत मजा आता है। चाक पर आकृतियाँ बनाना वे जल्दी ही सीख जाते हैं। लेकिन इससे पहले बच्चों को चिकनी मिट्टी से खेलने के मौके दिए जाते हैं।

वे कई तरह के खिलौने बनाते हैं। वे हर तरह की वस्तुएँ बनाते  हैं – प्लेट, गेंदें, रसोई के बर्तन, पक्षी, जानवर। वे बहुत कुछ कल्पना करते हैं और बनाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जब माता- पिता बरतनों को आग में पकाते हैं, तो वे बच्चों को अपने खिलौने भी पकाने की प्रक्रिया में शामिल करने देते हैं। बच्चे और माता-
पिता दोनों ही पकाई की यह प्रक्रिया पूरी होने की शिद्दत और चिन्ता से प्रतीक्षा करते हैं। कौन सी वस्तु पकाई को बर्दाश्त कर सकती है और कौन सी नहीं, इसका सबक जल्दी ही बच्चों को मिल जाता है। मुझे लगता है कि सीखने की प्रक्रिया से सम्बन्धित ऐसा बहुत कुछ है जो हम लोक संस्कृति से ले सकते हैं। यह वास्तविक और सन्दर्भित होता है: यह उपहास की बात नहीं है। जो कुछ भी होता है वह वास्तविक है और बहुत महत्वपूर्ण भी।
बच्चों को महसूस होता है कि वे इस पूरे घटनाक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

बच्चों में आत्म-सम्मान पैदा करने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है? बच्चा हिस्सेदार है: यहाँ बच्चे की गतिविधि सम्पूर्ण योजना का एक महत्वपूर्ण अंश है। उसके हिस्से आया काम किया ही जाना है, उसे वह नहीं करेगा तो किसी और को करना होगा। इससे बच्चे को महसूस होता है कि उसका भी योगदान है। इससे उसका व्यक्तित्व और आत्मछवि भी बनती है। बच्चों के लिए गतिविधियों को क्रमबद्ध किया जाता है: बच्चों की इन गतिविधियों को ध्यान से देखें तो हम पाते हैं कि वे क्रमबद्ध होती हैं। सबको मालूम रहता है कि 2 साल के बच्चे से क्या करवाया जाना चाहिए और क्या नहीं। गाँव में यह जिस प्रकार होता है वह सच में उल्लेखनीय है। जब कोई अपने किसी बच्चे को कोई ऐसा काम दे देते हैं जो उसकी उम्र के मुताबिक न हो तो इस पर ऐतराज उठाने वाले भी वहीं मौजूद होते हैं। कुछ गतिविधियों में वयस्क बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं, कुछ गतिविधियाँ वयस्कों की ओर से न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ होती हैं, और कुछ बाद के चरण में स्वतन्त्र तौर पर। जब सम्पूर्ण समुदाय प्रक्रिया के बारे में जागरूक होता है, तो अगली पीढ़ी को शिक्षित करना आसान हो जाता है। सरल से जटिल की ओर: बच्चों के लिए चिह्नित सब गतिविधियाँ सरल से जटिल की ओर जाती हैं। साथ ही, शुरुआती गतिविधियों
में कोई जोखिम नहीं होता। वे धीरे-धीरे अधिक जोखिम की ओर जाती हैं। बच्चों के लिए दोस्ताना माहौल: सबसे महत्वपूर्ण बात है कि बच्चों को दोस्ताना माहौल मिलता है।

बहुत कम डाँट-डपट होती है, गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर तूल नहीं दिया जाता। इस बात को समझा जाता है कि बच्चा कुछ करता है तो उससे गलती तो होगी ही। गलतियों को सीखने की प्रक्रिया के स्वाभाविक हिस्से के तौर पर स्वीकारना पूरे माहौल का ही हिस्सा होता है। हम इस प्रक्रिया को ध्यान से देखें तो समझ पाएँगे कि बच्चे के लिए मैत्रीपूर्ण वातावरण का कितना महत्व होता है और कितना अहम होता है कि बच्चे रोककर न रखा जाए।
मुझे लगता है कि लोक संस्कृति ने बच्चों को सीखने में दक्ष बनाने के लिए बहुत कुछ निवेश किया है – सवाल है कि क्या हम इस बातसे कुछ सीखने को तैयार हैं?

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