विशेष जरूरतें: प्रारम्भिक बाल्यावस्था की पहचान(Identyfy Early Childhood) तथा सुधारात्मक प्रयास : अनुराधा नायडू का पूरा आलेख पढ़े शब्द-शिखर में |

►अनुराधा नायडू
क्या आपको उस दिन की याद है जब आपने पहला कदम रखा था? सम्भावना यही है कि आपको याद नहीं होगा। प्रारम्भिक बचपन की एक धुंधली याद भर शेष रहती है: हमारी सबसे प्रारम्भिक स्मृतियाँ लगभग तीन साल की उम्र तक ही पीछे जाती हैं। जब आप इस बारे में सोचते हैं, तो प्रारम्भिक वर्षों में बढ़ना और विकास एक चमत्कार लगता है। जीवन के पहले तीन वर्षों में, मस्तिष्क का 90 प्रतिशत विकास पूरा हो जाता है। 1 छह साल
की उम्र तक, हम चलना, बात करना, अपना पोषण करना, साथियों के साथ खेलना, जिज्ञासा प्रकट करना तथा भावनाओं को व्यक्त करना सीख चुके होते हैं। प्रकृति में हर चीज एक संरचना के रूप में क्रमिक ढंग से प्रकट होने के लिए नियोजित है। उदाहरण के लिए, शिशु अपने शरीर पर एक क्रम में नियंत्रण हासिल करते हैं -

 गर्दन से नितम्ब तक और केन्द्र से बाहरी छोरों तक। जन्म के समय, शिशु के मस्तिष्क में 100 अरब न्यूरॉंस तक
होते हैं।

2 जीवन के पहले कुछ दिनों में प्रति न्यूरॉन 2,500 संवेदी सूत्र कड़ियाँ (सिनाप्टिक कनेक्शन) होती हैं।

3 तीन वर्ष की आयु तक ये छह गुना बढ़ जाती हैं। जहाँ ज्याँ पियाजे तथा लेव वायगॉट्स्की जैसे पथ प्रवर्तक विकासवादी मनोवैज्ञानिकों ने बाल विकास के सिद्धान्त प्रतिपादित किए, वहीं वर्तमान शोध आज उनके दावों की
वैज्ञानिक आँकड़ों और प्रायोगिक जानकारी के द्वारा पुष्टि कर सकता है।

क्या आप जानते हैं कि नवजात शिशु प्रसन्न तथा उदास चेहरों को पहचान सकते हैं? या कि, जन्म के समय, बच्चे 8-10 इंच की दूरी से चीजों तथा मनुष्यों के चेहरों को देख सकते हैं? छह साल की उम्र तक पहुँचने से पहले एक बच्चे में सीखने की विशाल सम्भावित क्षमता होती है। प्रारम्भिक सुधारात्मक प्रयास की मेरे जैसी पक्षधर के लिए, तंत्रिका-सम्बन्धी विकास के ये शुरुआती वर्ष अति रोचक होने के साथ ही विनम्र बनाने वाले भी हैं। जिन बच्चों की विकास की संरचनाएँ अव्यवस्थित, बाधित या विलम्बित हो गई हैं, उनको सहारा देने के लिए उनके परिवार के साथ सक्रिय भागीदार बनने का यही समय होता है। एक व्यापक अर्थ में, हममें से हरेक एक बच्चे के जीवन में प्रारम्भिक सुधारात्मक हस्तक्षेप करने वाला होता है।

इसके लिए केवल अच्छे अवलोकन कौशलों तथा विकासात्मक लक्ष्यों और पड़ावों की गहरी समझ की जरूरत होती है। जन्म तथा प्रथम वर्ष अभी हाल ही तक मैं हांगकांग में वहाँ की सरकारी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में भर्ती तीन साल तक के बच्चों के साथ सघन रूप से कार्य कर रही थी। भर्ती होने वाले बच्चों की प्रकृतियाँ हमें यह दर्शाती थीं कि प्रारम्भिक बाल्यावस्था के वर्षों में विकासात्मक अक्षमताओं को जल्दी पहचान लेने के तीन बड़े अवसर आते हैं। वहाँ आने वाले सबसे छोटे बच्चे केवल कुछ दिन के होते हैं। वहाँ मानसिक आघात (ट्रॉमा) या आनुवांशिक विकार के कारण होने वाली गम्भीर अक्षमताओं को एकदम जन्म होते ही (या जन्म के पहले) अस्पताल में ही पहचाना जा सकता है। ऐसी ही एक बच्ची को जब पहली बार देखा तब वह केवल 18 दिन की थी। वह प्राडर- विल सिण्ड्रोम (पी.डब्ल्यू.एस.) 4 नामक एक विरले विकार से ग्रस्त थी। विकार की पहचान सरकारी अस्पताल में जन्म के समय ही हो गई थी। हर 12,000-15,000 बच्चों में पी.डब्ल्यू.एस. का केवल एक मामला होता है। प्रकृति हमारे सामने हमेशा ऐसी चुनौतियाँ पेश करती रहती है जो हमें सामान्य स्थिति तथा विकास की अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती हैं। आनुवांशिक विकारों से ग्रस्त बच्चों की जरूरतों का समाधान करने के लिए सक्षम बनना ऐसी ही एक चुनौती है।

आज प्राडर-विल सिण्ड्रोम, क्री-डु-शाट, रूबिन्सटीन-तायबी सिण्ड्रोम, मिटोकोण्ड्रियल रोगों (जिनकी पहचान जन्म के समय ही हो जाती है) जैसी विरली आनुवांशिक बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के निदान के लिए जानकारी का भण्डार तथा उनके माता-पिताओं की सहायता के संजाल (सपोर्ट नैटवर्क) उपलब्ध हैं। प्रारम्भिक वर्षों में ऐसे बच्चों के माता-पिता को दुःख, निराशा और क्रोध का सामना करने के संघर्ष से गुजरना पड़ता है। जब ऐसी माएँ घर पर अपने को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों में नहीं लगा पातीं तो वे कभी-कभी अवसाद में डूब जाती हैं। फिर भी, मैंने एक ऐसी माँ को जाना और उसके साथ काम किया है जिसने डाउन सिण्ड्रोम वाले बच्चे को चुना और उसे पूरे दिल से अपनाया। मैंने हांगकांग और भारत में, दोनों जगह देखा है, ऐसे बच्चों के जीवन के प्रथम वर्ष में, सुधार के चिकित्सकीय प्रयासों (शल्य चिकित्साएँ तथा पोषण क्लीनिकों में जाना) पर ध्यान देना बेहद जरूरी होता है। तथापि, सुधारात्मक प्रारम्भिक प्रयास की भी गुंजाइश रहती है। इस अवस्था में इन्द्रियों को उत्प्रेरित करने और उनका निरीक्षण करते रहने तथा शारीरिक हरकत और सम्प्रेषण को प्रोत्साहित करने के लिए निम्न गतिविधियों की अनुशंसा की जाती हैः

1. विभिन्न शारीरिक स्थितियों में (पेट के बल लेटे हुए, बैठे हुए, खड़े हुए, झुकते हुए) खेलने को प्रोत्साहित करना।
2. विकास की दृष्टि से उपयुक्त खिलौनों (झुनझुने, गेंदें, ब्लाक, घोंसले बनाने के कप, खूँटी और छल्ले तथा धक्का देकर चलने वाली गाड़ियाँ) का उपयोग करना।
3. ऐसे खेल खेलना जो इन्द्रियों को उत्प्रेरित करें, जैसे वातावरण की ध्वनियों को सुनना, चीजों को खोजना, ध्वनियों की नकल करना, क्रियाओं की नकल करना, उदाहरण के लिए, ताली बजाना, हाथ हिलाना, थपथपाना आदि।
4. चीजों की ओर इशारा करने, टिप्पणी करने, चीजों को नाम देने तथा पढ़ने, कहानी सुनाने और गाने में अपनी पसन्द का चुनाव करने को प्रोत्साहित करना। दूसरा वर्ष: बात करने का समय प्रारम्भिक सुधारात्मक प्रयास के लिए दूसरा अवसर जीवन के दूसरे वर्ष में आता है। एक बच्चे की शब्दावली पहले से दूसरे जन्मदिन तक चार गुना बढ़ जाती है।

5 यहाँ उस स्थिति का एक उपयुक्त उदाहरण है जब इस पड़ाव को हासिल करने में देर हो जाती है। जब जोशुआ
ढाई साल का था तब उसके शिशु-चिकित्सक ने निदान किया कि उसकी बोली तथा भाषा का विकास देर से हो रहा है। शुरू से ही, जोशुआ को अपनी कारों के साथ खेलना ज्यादा पसन्द था। उसकी मुस्कुराहट बहुत सुन्दर थी, लेकिन उसे आपकी ओर देखने तथा बात करने में कठिनाई होती थी। ज्यादा करके वह लोगों के ध्यान से बचे रहना पसन्द करता था। प्रारम्भिक सुधारात्मक प्रयास, एक अर्थ में प्रकृति (जो हमें निरन्तर कुछ करने के लिए आमंत्रित करती रहती है) के साथ बातचीत होती है। जोशुआ जैसे बच्चों के मामले में, सीखने की जरूरतें जटिल और एक न पहचाने गए विकासात्मक समन्वयन विकार से जुड़ी हुई होती हैं। इस समय, उसे उसकी उत्तेजना को सम्प्रेषित करने तथा साझा करने की जरूरत होती है और हमारे लिए उसका अनुसरण करना जरूरी होता है। उसकी देखभाल करने वाले जैसे लोगों को उसकी बोली तथा भाषा के विकास में मदद करने के
तरीके नहीं मालूम होते। दुर्भाग्य से, शिशु संकेतों और चित्र संवाद जैसी सरल सम्प्रेषण रणनीतियों का उपयोग करने के प्रति इस डर से प्रतिरोध होता है कि वैसा करने से बोलने का विकास रुक जाएगा। लेकिन इस डर का कोई आधार नहीं है। ऐसे अवसर जब जोशुआ जैसे बच्चे खाने की चीजों, खिलौनों, किताबों का चुनाव कर सकते हैं और ‘हाँ/नहीं’ कह सकते हैं, वास्तव में हताशा के स्तरों को कम करते हैं और भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं। स्वाभाविक रूप से, बच्चे ज्यादा सुरक्षित और आश्वस्त महसूस करने लगते हैं - जो खेल, सम्प्रेषण और भाषा विकास के लिए पूर्व शर्त होती है। मैंने अनेक वर्षों तक माकाटन संकेत प्रणाली 6 पर आधारित शिशु संकेतों का उपयोग किया। यहाँ उदाहरण के रूप में तीन सफल कहानियाँ दी जा रही हैं:

1. 2 वर्ष की आयु पार कर लेने के बाद, पीटर (डाउन सिण्ड्रोम से ग्रस्त) अपने पसन्दीदा संगीत, किताबों और खिलौनों के लिए संकेत कर सकता था।

2. 24 माह की होने पर शिया (पी.डब्ल्यू.एस. से ग्रस्त), जो अभी खड़ी भी नहीं हो सकती, लेकिन इशारे कर सकती है। जैसे-जैसे उसका परिवार और उसके शिक्षक उसकी बात समझते जा रहे हैं, आँसू तथा हताशा धीरे-धीरे विदा होते जा रहे हैं।

3. ऐन्थिया के निदान में उसके बोलने तथा भाषा के विकास में देरी होना पाया गया, लेकिन 3 साल की उम्र में उसका बोलना आरम्भ हो गया है, और दिलचस्प बात यह है कि उसका उंगलियों से सम्प्रेषण गायब होता जा रहा है। बोलने तथा भाषा के विकास को घर पर तथा खेल समूहों में उत्प्रेरित करने के लिए निम्न अनुशंसाएँ की जाती हैं:

1. अपने बच्चे का अनुसरण करें, जो वह कह रहा है उसे, वाक्यों को आगे बढ़ाते हुए और नकल करने को प्रोत्साहित करते हुए, दोहराएँ। उसके मनपसन्द खेलों, किताबों, गीतों का इस्तेमाल करें और दैनिक जीवन में उसे ढेर सारे विकल्प दें।

2. हर सप्ताह अभ्यास करने के लिए कुछ शिशु संकेत चुनें। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सम्प्रेषण का दायरा फैलता जाए, माता- पिताओं तथा देखभाल करने वालों को प्रशिक्षित करें। आप जब बात भी करें, पढ़ें और गाएँ, तब भी हमेशा संकेत सम्प्रेषण का इस्तेमाल करें।

3. प्रतिदिन पढ़ने के लिए तीन किताबें चुनें और उन्हीं किताबों को 2-3 सप्ताह तक दोहराएँ। कहानी से मेल खाते हुए खिलौने तथा चित्रों वाले कार्डों का उपयोग करें। किताबें न होने पर, परिचित कहानियों तथा चित्रों वाले कार्डों का उपयोग करें।

4. प्रतिदिन पाँच गीत गाएँ। गाते समय कुछ शब्द छोड़ दें और अपने बच्चे को उन पंक्तियों को समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें।

5. बारी-बारी से खेले जाने वाले खेल खेलें: चित्रों को अलग करना और आपस में मिलान करना, साथ मिलकर चित्र बनाना, गेंद के खेल आदि।

किण्डरगार्टन:

 3-6 वर्ष प्रारम्भिक सुधारात्मक प्रयास के लिए तीसरा बड़ा अवसर किण्डरगार्टन में प्रवेश के समय आता है। किण्डरगार्टन के शिक्षक ऐसे बच्चों की पहचान करने और उन्हें सहारा देने में मदद कर सकते हैं जो बेढंगेपन, आत्म-नियंत्रण, सामाजिक व्यग्रता या उत्साह की कमी की समस्याओं के साथ संघर्ष करते हैं। खेल तथा सामाजिक सम्प्रेषण, विकास के ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर भविष्य में स्कूल में समावेशन तथा मित्रों का समूह बनाना सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है। ड्रेक की कहानी इसकी एक मिसाल पेश करती है। अपनी किण्डरगार्टन कक्षा में ड्रेक चुपचाप बैठा रहता है। आमतौर पर वह अपने-आप खेलता रहता
है, जबकि उसके साथी जोड़ों में खेलना आरम्भ कर रहे होते हैं। जब वह व्यथित होता है, तो वह बहुत जोर से फूट पड़ता है और अपने-आप को शान्त करने के लिए संघर्ष करता है। हालाँकि ड्रेक प्रवाहपूर्वक पढ़ने वाला बच्चा है, लेकिन वह अपनी बात को सरल वाक्यों में व्यक्त नहीं कर पाता। प्रारम्भिक सुधार-प्रयास करने वाले को, यह सुनिश्चित करने के लिए कि बच्चे के विकास के सभी क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है, एक सन्तुलन बनाते हुए आगे बढ़ना होता है। मेरे अनुभव से, बच्चे के किण्डरगार्टन शिक्षकों के साथ घनिष्ठ रूप से काम करने से खेल तथा सीखने का सहारा देने वाला वातावरण निर्मित करने में मदद\ मिलती है। किण्डरगार्टन शिक्षकों के लिए एक समावेशी कक्षा निर्मित करने के लिए निम्न रणनीतियों की अनुशंसा की जाती है:

1. यदि बच्चे का व्यवहार भिन्न प्रतीत होता है तो उसे नाम देने से बचना। माता-पिता को अपने शिशु-चिकित्सक से परामर्श लेने की सलाह देना। अपने विद्यार्थियों की पसन्दों तथा नापसन्दों का आकलन करना। बच्चों की ऐंद्रिक प्रवृत्तियाँ अलग-अलग प्रकार की होती हैं। कक्षा में उपलब्ध सामग्री की एक सूची बनाना और बच्चों की असामान्य प्रतिक्रियाओं को दर्ज करना।

2. धैर्य रखना, बच्चों को आश्वस्त करना और प्रतिक्रिया करने के लिए उन्हें समय देना। कुछ बच्चों को जानकारी को समाहित करने के लिए ज्यादा समय की जरूरत होती है।

3. दृश्य सहायता सामग्री का उपयोग करते हुए एक समावेशी कक्षा निर्मित करना। जैसे ठीक से नजर आने वाली समय सारणी, सामूहिक गतिविधि करवाते समय अच्छी तरह सुनने और देखने को प्रोत्साहित करने के वाले संकेत कार्ड तथा दृश्यात्मक क्रम कार्ड जो बच्चों को चरणबद्ध तरीके से कामों को करना बतलाते हैं।

4. बोलने में देरी से ग्रस्त बच्चों के लिए अपनी सम्प्रेषण रणनीति विकसित करना। आप शिशु संकेतों तथा चित्र सम्प्रेषण और विकल्प बोर्डों का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालिया दौर में, एप्स के अपने खजाने से लैस डिजिटल टैबलेट में सम्प्रेषण को सहारा देने वाले कुछ शानदार विकल्प उपलब्ध हो गए हैं। माता-पिताओं तथा उपचारकर्ताओं के साथ इन पर मिलकर काम करना।

5. सुरक्षा और भरोसे के लिए अपनी फोटो वाला एक सहायताकार्ड बोर्ड पर लगाना, और बच्चों के लिए चार अनुभूतियों (प्रसन्न, उदास, क्रोधित तथा थका हुआ) वाला एक चार्ट रखना ताकि वे आपको बता सकें कि उन्हें कैसा लगता है।

6. जो बच्चे शारीरिक हलचलों के लिए उत्साहित रहते हैं, उनका खेल के मैदान में समय बढ़ाना और ऐसी गतिविधियों को शामिल करना जैसे जिम की गेंद पर उछलना और संतुलन डण्डे पर चलना।

7. चीजों की हेरा-फेरी करने वाले पुट्ठे के बक्से चन्चल उंगलियों वाले बच्चों को शान्त करने में मदद करते हैं। रबड़ की संख्याएँ और अक्षर, आकृतियाँ और सुरक्षित आकार के विशेष सतहों वाले खिलौने, और इसी तरह बुलबुले, खेलने की गूंथे हुए आटे की लोई और चपेटने के मुलायम खिलौने भी अशान्त बच्चों को शान्त कर सकते हैं और राहत दे सकते हैं।

8. भावनात्मक रूप से संवेदनशील बच्चों को संगीत से सुख मिलता है। एक संवेदनशील शिक्षक एक माँ से उसके बच्चे की मनपसन्द सीडी छोड़ जाने के लिए कहेगा।

9. कक्षा के ऐसे साथियों की पहचान करना जो खेलने के समय में भूमिकाओं वाले खेल (मोड-प्ले) खेल सकते हैं। इनमें कैसे शामिल होकर खेल सकते हैं, इसके बारे में बात करना तथा छोटे-छोटे समूहों में अभ्यास के लिए बारी-बारी से खेले जाने वाले सरल खेल आयोजित करना।

निष्कर्ष :-

जीवन के पहले तीन वर्षों में विकास की गति और उसका विस्तार आश्चर्यजनक होता है। यह जैविक अवस्था विशेष जरूरतों वाले बच्चों को भरपूर परिवेशगत उत्प्रेरण प्रदान करने के अवसर देती है। हम जो कुछ भी प्रारम्भिक वर्षों में करते हैं वह बच्चे के तंत्रिका सम्बन्धी विकास में योगदान देता है और परिवार को उसकी जरूरतों का समाधान करने के लिए तैयार करता है। इसमें निरन्तरता बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। आनुवांशिक विकारों से ग्रस्त या जन्म के समय मानसिक आघात लगे बच्चों को अस्पतालों में ही पहचाना जा सकता है। विकास के विभिन्न पड़ाव आने के साथ अन्य प्रकार की विशेष जरूरतें प्रकट हो सकती हैं। दो साल की उम्र में भाषा की शब्दावली का विस्फोट होता है जिसका निश्चित रूप से लाभ उठाया जाना चाहिए। शिशु संकेतों को सीखने तथा चित्र सम्प्रेषण के साथ- साथ गेय तुकों, गीतों और कहानियों का उपयोग करने से बोलने और भाषा के विकास को सहारा मिलता है, जो इस आम धारणा के विपरीत है कि वैकल्पिक सम्प्रेषण से बोलना बाधित होता है। माता-पिताओं तथा पेशेवर लोगों के साथ मिलकर नियमित रूप से काम करके किण्डरगार्टन शिक्षक प्रारम्भिक सुधार-प्रयास में सहयोग कर सकते हैं। जैसा मैने अपने अनुभव से सीखा है, किसी बड़े महानगर में जहाँ लोग बस मतलब का सम्बन्ध रखते हैं, प्रारम्भिक सुधार-प्रयास दल अकसर एक परिवार जैसा बन जाता है। इस तरह से  मित्रता और आशा का एक दायरा उभरता है और आगे बढ़ता है। उदाहरणस्वरूप उल्लेखित सभी मामले मेरे पेशेवर कार्य से लिए गए हैं, पर उनमें आए बच्चों के नाम उनकी निजता की रक्षा करने की दृष्टि से बदल दिए गए हैं।

prarambhik Balyavastha ki pahchan,प्रारम्भिक बाल्यावस्था की पहचान |

विशेष जरूरतें: प्रारम्भिक बाल्यावस्था की पहचान(Identyfy Early Childhood) तथा सुधारात्मक प्रयास : अनुराधा नायडू का पूरा आलेख पढ़े शब्द-शिखर में | Rating: 4.5 Diposkan Oleh: Editor