कक्षा के शिक्षण के दौरान शर्मीले या संकोची स्वभाव के बालकों को सहज कैसे बनाये(Demure shy kids how to create apontaneous) ? कैसे हटाये बालमन से "संकोच की चादर"

►मनस्वनी श्रीधर
शर्मीले या संकोची स्वभाव वाले विद्यार्थियों को सभी के सामने सहज बनाना एक आम समस्या है जिससे शिक्षकों का अक्सर सामना होता है। लेखिका ऐसे तरीके सुझा रही हैं जिन्हें शिक्षक आजमा सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले शिक्षक शान्त और शर्मीले बच्चों के बीच अन्तर बना पाएँ। कई बार ऐसा होता है कि शान्त बच्चे पर
शर्मीले  होने का लेबल लग जाता है। शान्त विद्यार्थी वो होते हैं जो कक्षा में यदा-कदा ही हिस्सेदारी करते हैं अन्यथा वे अपने आप में और कक्षा के अन्य बच्चों के साथ सामान्य रहते हैं। शर्मीले विद्यार्थी असहज महसूस करते हैं फिर चाहे उनसे शिक्षक ने कोई सवाल किया हो या उनके अपने किसी साथी ने या फिर वे खुद ही कोई कुछ सोच रहे हों। ऐसे विद्यार्थियों के मन में ऐसी हीन भावना घर कर लेती है कि वे परिचितों और अपरिचित दोनों के
सामने खुद को व्यक्त करने में असमर्थ पाते हैं।

विद्यार्थियों की इस तरह की भावनाओं से पार पाने और उन्हें सक्रिय बनाने में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। साल की शुरुआत में ही अपने विद्यार्थियों को समझा दें कि संकोच तब तक ठीक है जब तक कि वो आपको, एक-दूसरे को आपस में जान नहीं लेते। जो बच्चे शर्मीले हैं उनके साथ उन प्रसिद्ध लोगों और महान शख्शियतों के बारे में बात करें जो अपने बचपने में शर्मीले रहे हैं। उन रणनीतियों की चर्चा करें जिन्हें इन शख्शियतों ने अपने शर्मीलेपन पर विजय पाने के लिए अपनाया और अपने सपनों को पाया। ज्यादातर शर्मीले बच्चे सोचते हैं कि वे दूसरे बच्चों की परछाई बनकर या उनका सहारा लेकर हमेशा ऐसे बने रहेंगे। आपको बच्चों की यह मानसिकता बदलनी होगी। ऐसे बच्चों के साथ योजना बनाना आसान होता है जो शोर करते हों और अपनी बातोंको\ स्पष्ट तरीके से व्यक्त कर पाते हों । क्योंकि यही बच्चे आपकी कक्षा को चलाते रहने में मदद करते हैं। शर्मीले बच्चों की ओर अपना ध्यान लगाना शिक्षक के लिए समय और ऊर्जा खर्च करने का काम है क्योंकि यह बहुत चुनौतीपूर्ण और समय खपाऊ है।

लेकिन आपकी एक मुस्कान, एक टिप्पणी, एक छोटा सीधा सवाल ऐसे बच्चों को कक्षा में चलने वाली बातों पर समझ बना पाने में मदद  करेगी। इन बच्चों को रोज के लिए कोई ऐसा कार्य सौंपे जिससे वे आपसे और पूरी कक्षा से रोज रूबरू हो सकें। आपका दिया काम पूरा करते हुए इन्हें अनजाने में ही आपसे और कक्षा के अपने साथियों से बात करने का अवसर मिलेगा। अपना लक्ष्य ध्यान रखें कि इसका उद्देश्य कक्षा का डर दूर करना है। शर्मीलेपन के कई प्रकार होते हैं और ऐसे में आप इसके लिए ऐसे बच्चे चुनें जो खुलने के लिए बस एक धक्के का ही इन्तजार कर रहे थे। आप उन्हें ऐसे काम सौंपे जैसे घण्टी बजने के बाद जब सारे बच्चे कक्षा में आ जाएँ तो कक्षा का दरवाजा बन्द करना। आप यह बात आसानी से कह सकते हैं कि, “ अमुक आज से तुम्हारा काम होगा कि जब घण्टी बज जाए और सभी कक्षा के भीतर आ जाए तो तुम दरवाजा बन्द करोगे। प्लीज। अन्यथा हमें बाहर के शोर से जूझना होगा। और मैं इस काम की तारीफ करूँगा।” आपका आखिरी वाक्य साफ यह संदेश देता है कि जो भी यह काम करेगा वह शिक्षक की मदद करेगा। यह किसी बच्चे में विश्वास बनाए रखने और उसे अच्छा महसूस कराने के लिए काफी है। और यह उन्हें पूरी कक्षा में घूमने का अभ्यस्त भी बना देगा।

आप इन्हें सभी बच्चों से होमवर्क/असाइनमेंट बुक इकट्ठे करने का काम दे सकते हैं। यह काम ऐसे बच्चों को सौपें जो अन्य बच्चों से मिलने-जुलने में रुचि नहीं लेते। ऐसे बच्चे जो अपनी होमवर्क की पुस्तिका स्कूल नहीं लाते। यह बच्चों को डरा भी सकता है तो ऐसे में बच्चों से कहें कि, “क्या आप आज से होमवर्क/असाइनमेंट पुस्तिका सभी से इकट्ठी करेंगे?” यह उनके लिए बहुत मददगार होगा। अगर वह खुद ही कॉपी न लाया हो तो आपका उसको यह कहना कि, ‘कोई बात नहीं’। उसे बहुत हिम्मत देगा। आपकी यह बात विद्रोही बच्चों के साथ बन सकने वाली विपरीत परिस्थितियों में शर्मीले बच्चों को मदद करेगी। कक्षा में शर्मीले बच्चों से रोज बातचीत करें। भले ही यह बातचीत उनके कपड़ों, उनकी चीजों की तारीफ करना ही हो। इसे अनौपचारिक रखें और जारी रखें ताकि यह सोचकर शर्मीले बच्चे घबराएँ न कि आखिर इस तारीफ पर क्या प्रतिक्रिया दें। पहले बच्चों को अन्य लोगों के साथ घुल-मिल जाने दें उसके बाद उन्हें प्रतिक्रिया देने की कला सिखाएँ। सब कुछ एक बार में या तुरन्त नहीं हो सकता पर यह बच्चों की घबराहट कम करेगा। बच्चों को दुनिया के लिए तैयार करने की इस प्रक्रिया में अभिभावकों को भी भागीदार बनने के लिए तैयार करें।

उन्हें कक्षा में अपने बच्चों के साथ एक खेल खेलने के लिए तैयार करें जिसमें बच्चों को उनके सवालों का जवाब देने के लिए हाथ उठाना होगा। ऐसी गतिविधियों से वे अपनी कक्षा की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सहज महसूस करेंगे। अभिभावकों से कहें कि वे बच्चों से घर में कहानी को मन ही मन पढ़ने की बजाय जोर-जोर से आवाज से कहानी सुनाने को कहें। धीरे-धीरे बच्चे अपनी आवाज़ सुनने के आदी हो जाएँगे और अन्तत: इसे पसन्द करना सीख जाएँगे। अभिभावकों को भी चाहिए कि वो बच्चों को फोन और दरवाजे पर आए लोगों को जवाब देने दें। रेस्टोरेंट में खाना आर्डर करने दें। यह उन्हें बिलकुल अनजान लोगों से रूबरू होने का मौका देगा और इससे कक्षा में चीजें आसान हो जाएँगी। अपने बच्चों को आसपड़ोस के बच्चों के साथ मिलकर नाटक खेलने के लिए प्रेरित करें। एक बार वे अपने परिचित माहौल में अपने शर्मीलेपन से निजात पा लें तो यह कक्षा में कम कठिन होगा। शिक्षा का मतलब आखिरकार जीवन के हुनर सीखना है और शिक्षक की भूमिका इसमें धुरी की है।

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